सुप्रीम कोर्ट में रोस्टर सिस्टम हेतु अधिसूचना जारी

रोस्टर सिस्टम के अनुसार जनहित याचिकाएं मुख्य न्यायाधीश ही सुनेंगे. सुप्रीम कोर्ट मे जजों के बीच काम के बंटवारे का रोस्टर पहली बार सार्वजनिक किया गया है.

Feb 2, 2018, 14:27 IST
Supreme Court adopted new roster system
Supreme Court adopted new roster system

सुप्रीम कोर्ट ने जजों के बीच काम के बंटवारे का नया रोस्टर सिस्टम तय कर दिया है. नयी व्यवस्था 5 फरवरी 2018 से लागू होगी. इस व्यवस्था पीठों के हिसाब से मामलों की सुनवाई की श्रेणी तय की गई है.

रोस्टर सिस्टम के अनुसार जनहित याचिकाएं मुख्य न्यायाधीश ही सुनेंगे. सुप्रीम कोर्ट मे जजों के बीच काम के बंटवारे का रोस्टर पहली बार सार्वजनिक किया गया है.

अधिसूचना की विशेषताएं

•    अधिसूचना में मुख्य न्यायाधीश और 11 अन्य जजों की अध्यक्षता वाली पीठ के पास मामलों का बंटवारा किया गया है.

•    मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पीठ नई जनहित याचिकाओं, चुनाव मसलों, न्यायालय की अवमानना, सामाजिक न्याय आदि मसलों पर सुनवाई करेगी.

•    इसके अतिरिक्त दूसरे वरिष्ठ जज न्यायमूर्ति जे चेलमेश्वर की अध्यक्षता वाली पीठ के पास आपराधिक, श्रम, कर, भूमि अधिग्रहण, न्यायिक अधिकारियों से जुड़े मसले, समुद्री कानून आदि के मामले आएंगे.

•    तीसरे वरिष्ठतम जज न्यायमूर्ति रंजन गोगई की अध्यक्षता वाली पीठ के पास न्यायालय की अवमानना, पर्सनल लॉ, एक्साइज आदि के मामले सुनवाई के लिए आएंगे.

•    चौथे वरिष्ठतम जज न्यायमूर्ति मदन बी लोकुर की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष वन संरक्षण, भूमि अधिग्रहण, जेल, पेड़, धार्मिक आदि मामले आएंगे.

•    पांचवे वरिष्ठतम जज न्यायमूर्ति कूरियन जोसफ केपास श्रम, फैमिली लॉ, पर्सनल लॉ, धार्मिक कानून आदि के मामले सुनवाई हेतु आएंगे.

•    इसके अलावा न्यायमूर्ति अरूण मिश्रा एवं न्यायमूर्ति रोहिंग्टन एफ नरीमन की अध्यक्षता वाली पीठों के समक्ष इंजीनियरिंग और मेडिकल कॉलेज केरजिस्ट्रेशन से संबंधित मामले आएंगे.

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पृष्ठभूमि

सुप्रीम कोर्ट के इतिहास में पहली बार 12 जनवरी 2018 को सुप्रीम कोर्ट के चार वरिष्ठतम जज न्यायमूर्ति जे चेलमेश्वर, न्यायमूर्ति रंजन गोगई, न्यायमूर्ति मदन बी लोकुर और न्यायमूर्ति कूरियन जोसफ ने प्रेस कांफ्रेंस कर संवेदनशील जनहित याचिकाओं और महत्वपूर्ण मामलों को जूनियर जजों के पास भेजने पर आपत्ति जताई थी. इन जजों ने कहा था कि महत्वपूर्ण मामलों को जूनियर जजों के पास नहीं भेजा जाना चाहिए.

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